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ग्यारह साल पुराने पन्ने : कुछ भी नहीं बदला ?

मैनेजर की कलम से..
मैनेजर की कलम से..
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कल कई दिनों बाद पुरानी डायरी के पुराने पन्ने पलटे तो पाया की उन पर लिखा हुआ बहुत कुछ अभी भी पुराना नहीं हुआ है …नया है … अब भी प्रासंगिक है …११ साल बाद भी…….. काश कि ना होता………
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एक कविता के नीचे नोट किया था …” मार्च २००१ में फैले सांप्रदायिक तनाव एवं क्रमशः उभरते भ्रष्टाचार के मामलों पर” …………… ऐसी आदत थी….. जिस भावना से या जिस बात पर सोचते हुए कुछ लिखा , वो भी कविता या लेख के नीचे लिखने की….. …एक वो दिन थे और एक आज है की कमबख्त जो कुछ मन में चलता रहता है वो लिखने के लिए भी रात्रि जागरण करना पड़ता है और फिर सुबह ऑफिस के लिए जो रेस लगानी पड़ती है उस बीच दुनिया का सबसे बड़ा और मह्त्वपूर्ण सवाल यही होता है की …आज फिर लेट होगा क्या … टाइम पे पहुँच गये तो दुनियां की बाकी समस्याएँ फिर से समस्याएँ बन कर खड़ी हो जाती हैं और नहीं पहुंचे तो दिन भर अगले दिन टाइम पे पहुचने की रणनीति बनाते रहो ….
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बहरहाल, मुद्दे से पूरी तरह भटक जाऊं इसके पहले वापस आता हूँ, …हाँ तो बात चल रही थी ११ साल पुरानी कविता की …ठीक से याद नहीं तब कौन से भ्रष्टाचार के मामले उभर रहे थे …..पर अभी अभी हमने २-जी देखा है ….२०-२५ शून्य वाला घोटाला (भाई, ५ शून्य से लाख बनता है, इतना मालूम है ….आगे का गणित थोडा कमजोर है…माफ़ कीजियेगा) अब हम हर चीज में आगे बढ़ रहे हैं तो क्या भ्रष्टाचार सिर्फ चारा और चबेना में ही करते रहेंगे? ना जी ना …. वो घोटालों की पहली पीढ़ी थी … फर्स्ट – जी ……अब घोटालों की दूसरी पीढ़ी है …टू-जी …और अब तो थ्री-जी का ज़माना है …. स्पेक्ट्रम में घोटाले, ANTRIX घोटाला, S – बैंड घोटाला ……सब नाम से ही हाई-फाई लगते हैं ….बेचारा भोला आम आदमी उनका मतलब ही समझता रह जाये या फिर शून्य गिनता रह जाये ….
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अब बात करते हैं धार्मिक / सांप्रदायिक/ क्षेत्रीय तनाव की ……….इच्छा नहीं हो रही वातावरण को भारी करने की……….. तो समझदार को इशारा काफी… कहीं लोग किसी बाबा के पीछे भाग रहे हैं तो कहीं कोई बाबा लोगों के आगे …..कोई बेचारा अपने प्रदेश को अलग देश समझ बैठा है और वहां दूसरे प्रदेश से आ कर रोजी रोटी कमाने वालों को घुसपैठिये……. मजे की बात ये है की लोगों को रोजी रोटी देने वाले लोगों से शिकायत नहीं है उन्हें …….. एक सुबह तो वो बेचारे इतने भावुक हो गये की एक बैंक को सलाह दे दी की उनके प्रदेश में वहां के मूल निवासियों को ही नौकरी दी जाये ……. भगवान करे वो जल्दी स्वस्थ हो जाएँ ….. अपने मुन्ना भाई भी वहीँ हैं पर जाने क्यों उन्हें एक जादू की झप्पी नहीं देते ..कोई बात नहीं …उनकी झप्पी, उनकी मर्जी ….
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हाँ ये “मूलनिवासी” शब्द से याद आया ………एक कलाकार हैं फेसबुक पर…….कलाकार इसलिए क्यूंकि उनके पास एक अद्भुत कला है ……..वो किसी भी मुद्दे और किसी भी समस्या को पलक झपकते ही ….“मूलनिवासी” और “विदेशी” के बीच की समस्या में तब्दील कर देते हैं फिर चाहे वो किसी फिल्म पर विवाद हो या फिर मिड डे मील योजना ….और उनके हजारों अनुयायी बड़ी श्रध्दा से उसे शेयर करते हैं………… समझ नहीं आता आखिर कब थमेगा ये सिलसिला…….. समझने की कोशिश करता हूँ उन्हें भी पर समझ में तो यही आता है की ऐसे तो आपसी तनाव और जातिवाद बढेगा ही , कम तो कैसे भी नहीं हो सकता …………..आज भी सभ्य समाज में , किसी भी जगह किसी भी वक्त , हर कोई सबसे पहले आपकी जाति जानने की कोशिश करता है …..नाम से कहीं काम नहीं चलता ….पूरा नाम …..और उस से भी समझ नहीं आया तो शहर, गली मोहल्ला सब जानकर… आपकी योग्यता, आपके स्वभाव, आपकी आदतें सबका आंकलन कर लेते हैं ….. ऐसी प्रतिभा और ऐसा आंकलन वो भी सिर्फ नाम से हमारे समाज में ही संभव है………..बस करिए बस ….बहुत हो चुका…….
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कहीं आप भी ऐसा ही सोच रहे हैं क्या ….. बस कर यार ….. ठीक है बस करता हूँ ….. हाँ वो कविता रह गई जहाँ से मैंने बात शुरू की थी ….कोशिश तो बहुत की पर भूमिका बाँधने में ही समय निकल गया …..आपके सब्र की डोर भी खिंच गई ….तो चलिए वो अगली बार छोटी सी भूमिका के साथ …….आजकल सीक्वल का ज़माना है…….
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(अभिनव श्रीवास्तव) ०५.०५.२०१२

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